23 सूरए अल मोमिनून
सूरए अल मोमिनून मक्का में नाजि़ल हुआ और इसमें एक सौ अठारह आयतें और 6 रुकुउ हैं
खुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
अलबत्ता वह इमान लाने वाले रस्तगार हुए (1)
जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं (2)
और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं (3)
और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं (4)
और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं (5)
मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता (6)
पस जो शख़्स उसके सिवा किसी और तरीके़ से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (7)
और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं (8)
और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं (9)
(आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है (10)
जो बेहिश्त बरीं का हिस्सा लेगें (और) यही लोग इसमें हमेशा(जिन्दा) रहेंगे (11)
और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया (12)
फिर हमने उसको एक महफूज़ जगह (औरत के रहम में) नुत्फ़ा बना कर रखा (13)
फिर हम ही ने नुतफ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया फिर हम ही ने मुनजमिद खू़न को गोश्त का लोथड़ा बनाया हम ही ने लोथडे़ की हड्डियाँ बनायीं फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया फिर हम ही ने उसको (रुह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया तो (सुबहान अल्लाह) ख़ुदा बा बरकत है जो सब बनाने वालो से बेहतर है (14)
फिर इसके बाद यक़ीनन तुम सब लोगों को (एक न एक दिन) मरना है (15)
इसके बाद क़यामत के दिन तुम सब के सब कब्रों से उठाए जाओगे (16)
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर तह ब तह आसमान बनाए और हम मख़लूक़ात से बेख़बर नही है (17)
और हमने आसमान से एक अन्दाजे़ के साथ पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में (हसब मसलहत) ठहराए रखा और हम तो यक़ीनन उसके ग़ाएब कर देने पर भी क़ाबू रखते है (18)
फिर हमने उस पानी से तुम्हारे वास्ते खजूरों और अँगूरों के बाग़ात बनाए कि उनमें तुम्हारे वास्ते (तरह तरह के) बहुतेरे मेवे (पैदा होते) हैं उनमें से बाज़ को तुम खाते हो (19)
और (हम ही ने ज़ैतून का) दरख़्त (पैदा किया) जो तूरे सीना (पहाड़) में (कसरत से) पैदा होता है जिससे तेल भी निकलता है और खाने वालों के लिए सालन भी है (20)
और उसमें भी शक नहीं कि तुम्हारे वास्ते चैपायों में भी इबरत की जगह है और (ख़ाक बला) जो कुछ उनके पेट में है उससे हम तुमको दूध पिलाते हैं और जानवरों में तो तुम्हारे और भी बहुत से फायदे हैं और उन्हीं में से बाज़ तुम खाते हो (21)
और उन्हें जानवरों और कश्तियों पर चढे़ चढ़े फिरते भी हो (22)
और हमने नूह को उनकी क़ौम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा तो नूह ने (उनसे) कहा ऐ मेरी क़ौम खु़दा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे) डरते नहीं हो (23)
तो उनकी क़ौम के सरदारों ने जो काफ़िर थे कहा कि ये भी तो बस (आखि़र) तुम्हारे ही सा आदमी है (मगर) इसकी तमन्ना ये है कि तुम पर बुज़ुर्गी हासिल करे और अगर खु़दा (पैग़म्बर ही न भेजना) चाहता तो फरिश्तों को नाजि़ल करता हम ने तो (भाई) ऐसी बात अपने अगले बाप दादाओं में (भी होती) नहीं सुनी (24)
हो न हों बस ये एक आदमी है जिसे जुनून हो गया है ग़रज़ तुम लोग एक (ख़ास) वक़्त तक (इसके अन्जाम का) इन्तेज़ार देखो (25)
नूह ने (ये बातें सुनकर) दुआ की ऐ मेरे पलने वाले मेरी मदद कर (26)
इस वजह से कि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया तो हमने नूह के पास ‘वही’ भेजी कि तुम हमारे सामने हमारे हुक्म के मुताबिक़ कश्ती बनाना शुरु करो फिर जब कल हमारा अज़ाब आ जाए और तनूर (से पानी) उबलने लगे तो तुम उसमें हर किस्म (के जानवरों में) से (नर व मादा) दो दो का जोड़ा और अपने लड़के बालों को बिठा लो मगर उन में से जिसकी निस्बत (ग़रक़ होने का) पहले से हमारा हुक्म हो चुका है (उन्हें छोड़ दो) और जिन लोगों ने (हमारे हुकम से) सरकशी की है उनके बारे में मुझसे कुछ कहना (सुनना) नहीं क्योंकि ये लोग यक़ीनन डूबने वाले है (27)
ग़रज़ जब तुम अपने हमराहियों के साथ कश्ती पर दुरुस्त बैठो तो कहो तमाम हम्द व सना का सज़ावार खुदा ही है जिसने हमको ज़ालिम लोगों से नजात दी (28)
और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (दरख़्त के पानी की) बा बरकत जगह में उतारना और तू तो सब उतारने वालो से बेहतर है (29)
इसमें शक नहीं कि उसमे (हमारी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं और हमको तो बस उनका इम्तिहान लेना मंज़ूर था (30)
फिर हमने उनके बाद एक और क़ौम को (समूद) को पैदा किया (31)
और हमने उनही में से (एक आदमी सालेह को) रसूल बनाकर उन लोगों में भेजा (और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे डरते नही हो) (32)
और उनकी क़ौम के चन्द सरदारों ने जो काफिर थे और (रोज़) आखि़रत की हाजि़री को भी झुठलाते थे और दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी में हमने उन्हें सरवत भी दे रखी थी आपस में कहने लगे (अरे) ये तो बस तुम्हारा ही सा आदमी है जो चीज़े तुम खाते वही ये भी खाता है और जो चीज़े तुम पीते हो उन्हीं में से ये भी पीता है (33)
और अगर कहीं तुम लोगों ने अपने ही से आदमी की इताअत कर ली तो तुम ज़रुर घाटे में रहोगे (34)
क्या ये शख़्स तुमसे वायदा करता है कि जब तुम मर जाओगे और (मर कर) सिर्फ़ मिट्टी और हड्डियाँ (बनकर) रह जाओगे तो तुम दुबारा जि़न्दा करके क़ब्रो में से निकाले जाओगे (है है अरे) जिसका तुमसे वायदा किया जाता है (35)
बिल्कुल (अक़्ल से) दूर और क़यास से बईद है (दो बार जि़न्दा होना कैसा) बस यही तुम्हारी दुनिया की जि़न्दगी है (36)
कि हम मरते भी हैं और जीते भी हैं और हम तो फिर (दुबारा) उठाए नहीं जाएँगे हो न हो ये (सालेह) वह शख़्स है जिसने खुदा पर झूठ मूठ बोहतान बाँधा है (37)
और हम तो कभी उस पर इमान लाने वाले नहीं (ये हालत देखकर) सालेह ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले चूँकि इन लोगों ने मुझे झुठला दिया (38)
तू मेरी मदद कर ख़ुदा ने फरमाया (एक ज़रा ठहर जाओ) (39)
अनक़रीब ही ये लोग नादिम व परेशान हो जाएँगे (40)
ग़रज़ उन्हें यक़ीनन एक सख़्त चिंघाड़ ने ले डाला तो हमने उन्हें कूडे़ करकट (का ढे़र) बना छोड़ा पस ज़ालिमों पर (ख़ुदा की) लानत है (41)
फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा किया (42)
कोई उम्मत अपने वक़्त मुर्क़रर से न आगे बढ़ सकती है न (उससे) पीछे हट सकती है (43)
फिर हमने लगातार बहुत से पैग़म्बर भेजे (मगर) जब जब किसी उम्मत का पैग़म्बर उन के पास आता तो ये लोग उसको झुठलाते थे तो हम भी (आगे पीछे) एक को दूसरे के बाद (हलाक) करते गए और हमने उन्हें (नेस्त व नाबूद करके) अफ़साना बना दिया तो इमान न लाने वालो पर ख़ुदा की लानत है (44)
फिर हमने मूसा और उनके भाई हारुन को अपनी निशानियों और वाज़ेए व रौशन दलील के साथ फ़िरऔन और उसके दरबार के उमराओं के पास रसूल बना कर भेजा (45)
तो उन लोगो ने शेख़ी की और वह थे ही बड़े सरकश लोग (46)
आपस मे कहने लगे क्या हम अपने ही ऐसे दो आदमियों पर इमान ले आएँ हालाँकि इन दोनों की (क़ौम की) क़ौम हमारी खि़दमत गारी करती है (47)
गरज़ उन लोगों ने इन दोनों को झुठलाया तो आखि़र ये सब के सब हलाक कर डाले गए (48)
और हमने मूसा को किताब (तौरैत) इसलिए अता की थी कि ये लोग हिदायत पाएँ (49)
और हमने मरियम के बेटे (ईसा) और उनकी माँ को (अपनी क़ुदरत की निशानी बनाया था) और उन दोनों को हमने एक ऊँची हमवार ठहरने के क़ाबिल चश्मे वाली ज़मीन पर (रहने की) जगह दी (50)
और मेरा आम हुक्म था कि ऐ (मेरे पैग़म्बर) पाक व पाकीज़ा चीज़ें खाओ और अच्छे अच्छे काम करो (क्योंकि) तुम जो कुछ करते हो मैं उससे बख़ूबी वाकि़फ हूँ (51)
(लोगों ये दीन इस्लाम) तुम सबका मज़हब एक ही मज़हब है और मै तुम लोगों का परवरदिगार हूँ (52)
तो बस मुझी से डरते रहो फिर लोगों ने अपने काम (में एख़तिलाफ करके उस) को टुकड़े टुकड़े कर डाला हर गिरोह जो कुछ उसके पास है उसी में नेहाल नेहाल है (53)
तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उन की ग़फलत में एक ख़ास वक़्त तक (पड़ा) छोड़ दो (54)
क्या ये लोग ये ख़्याल करते है कि हम जो उन्हें माल और औलाद में तरक़्क़ी दे रहे है तो हम उनके साथ भलाईयाँ करने में जल्दी कर रहे है (55)
(ऐसा नहीं) बल्कि ये लोग समझते नहीं (56)
उसमें शक नहीं कि जो लोग अपने परवरदिगार की दहशत से लरज़ रहे है (57)
और जो लोग अपने परवरदिगार की (क़ुदरत की) निशानियों पर इमान रखते हैं (58)
और अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नही बनाते (59)
और जो लोग (ख़ुदा की राह में) जो कुछ बन पड़ता है देते हैं और फिर उनके दिल को इस बात का खटका लगा हुआ है कि उन्हें अपने परवरदिगार के सामने लौट कर जाना है (60)
(देखिये क्या होता है) यही लोग अलबत्ता नेकियों में जल्दी करते हैं और भलाई की तरफ (दूसरों से) लपक के आगे बढ़ जाते हैं (61)
और हम तो किसी शख़्स को उसकी क़ूवत से बढ़के तकलीफ देते ही नहीं और हमारे पास तो (लोगों के आमाल की) किताब है जो बिल्कुल ठीक (हाल बताती है) और उन लोगों की (ज़र्रा बराबर) हक़ तलफी नहीं की जाएगी (62)
उनके दिल उसकी तरफ से ग़फलत में पडे़ हैं इसके अलावा उन के बहुत से आमाल हैं जिन्हें ये (बराबर किया करते है) और बाज़ नहीं आते (63)
यहाँ तक कि जब हम उनके मालदारों को अज़ाब में गिरफ्तार करेंगे तो ये लोग वावैला करने लगेंगें (64)
(उस वक़्त कहा जाएगा) आज वावैला मत करों तुमको अब हमारी तरफ से मदद नहीं मिल सकती (65)
(जब) हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं तो तुम अकड़ते किस्सा कहते बकते हुए उन से उलटे पाँव फिर जाते (66)
तो क्या उन लोगों ने (हमारी) बात (कु़रआन) पर ग़ौर नहीं किया (67)
उनके पास कोई ऐसी नयी चीज़ आयी जो उनके अगले बाप दादाओं के पास नहीं आयी थी (68)
या उन लोगों ने अपने रसूल ही को नहीं पहचाना तो इस वजह से इन्कार कर बैठे (69)
या कहते हैं कि इसको जुनून हो गया है (हरगिज़ उसे जुनून नहीं) बल्कि वह तो उनके पास हक़ बात लेकर आया है और उनमें के अक्सर हक़ बात से नफ़रत रखते हैं (70)
और अगर कहीं हक़ उनकी नफ़सियानी ख़्वाहिश की पैरवी करता है तो सारे आसमान व ज़मीन और जो लोग उनमें हैं (सबके सब) बरबाद हो जाते बल्कि हम तो उन्हीं के तज़किरे (जिब्राईल के वास्ते से) उनके पास लेकर आए तो यह लोग अपने ही तज़किरे से मुँह मोड़तें हैं (71)
(ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (अपनी रिसालत की) कुछ उजरत माँगतें हों तो तुम्हारे परवरदिगार की उजरत उससे कही बेहतर है और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है (72)
और तुम तो यक़ीनन उनको सीधी राह की तरफ़ बुलाते हो (73)
और इसमें शक नहीं कि जो लोग आखि़रत पर इमान नहीं रखते वह सीधी राह से हटे हुए हैं (74)
और अगर हम उन पर तरस खायें और जो तकलीफें उनको (कुफ्र की वजह से) पहुँच रही हैं उन को दफ़ा कर दें तो यक़ीनन ये लोग (और भी) अपनी सरकशी पर अड़ जाए और भटकते फिरें (75)
और हमने उनको अज़ाब में गिरफ्तार किया तो भी वे लोग न तो अपने परवरदिगार के सामने झुके और गिड़गिड़ाएँ (76)
यहाँ तक कि जब हमने उनके सामने एक सख़्त अज़ाब का दरवाज़ा खोल दिया तो उस वक़्त फ़ौरन ये लोग बेआस होकर बैठ रहे (77)
हालाँकि वही वह (मेहरबान खु़दा) है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखें और दिल पैदा किये (मगर) तुम लोग हो ही बहुत कम शुक्र करने वाले (78)
और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुम को रुए ज़मीन में (हर तरफ़) फैला दिया और फिर (एक दिन) सब के सब उसी के सामने इकट्ठे किये जाओगे (79)
और वही वह (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है कि और रात दिन का फेर बदल भी उसी के एख़्तियार में है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (80)
(इन बातों को समझें ख़ाक नहीं) बल्कि जो अगले लोग कहते आए वैसी ही बात ये भी कहने लगे (81)
कि जब हम मर जाएँगें और (मरकर) मिट्टी (का ढ़ेर) और हड्डियाँ हो जाएँगें तो क्या हम फिर दोबारा (क्रबों से जि़न्दा करके) निकाले जाएँगे (82)
इसका वायदा तो हमसे और हमसे पहले हमारे बाप दादाओं से भी (बार हा) किया जा चुका है ये तो बस सिर्फ़ अगले लोगों के ढकोसले हैं (83)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला अगर तुम लोग कुछ जानते हो (तो बताओ) ये ज़मीन और जो लोग इसमें हैं किस के हैं वह फ़ौरन जवाब देगें ख़ुदा के (84)
तुम कह दो कि तो क्या तुम अब भी ग़ौर न करोगे (85)
(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि सातों आसमानों का मालिक और (इतने) बड़े अर्श का मालिक कौन है तो फ़ौरन जवाब देगें कि (सब कुछ) खु़दा ही का है (86)
अब तुम कहो तो क्या तुम अब भी (उससे) नहीं डरोगे (87)
(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो कि भला अगर तुम कुछ जानते हो (तो बताओ) कि वह कौन शख़्स है- जिसके एख़्तेयार में हर चीज़ की बादशाहत है वह (जिसे चाहता है) पनाह देता है और उस (के अज़ाब) से पनाह नहीं दी जा सकती (88)
तो ये लोग फ़ौरन बोल उठेंगे कि (सब एख़्तेयार) ख़ुदा ही को है- अब तुम कह दो कि तुम पर जादू कहाँ किया जाता है (89)
बात ये है कि हमने उनके पास हक़ बात पहुँचा दी और ये लोग यक़ीनन झूठे हैं (90)
न तो अल्लाह ने किसी को (अपना) बेटा बनाया है और न उसके साथ कोई और ख़ुदा है (अगर ऐसा होता) उस वक़्त हर खु़दा अपने अपने मख़लूक़ को लिए लिए फिरता और यक़ीनन एक दूसरे पर चढ़ाई करता (91)
(और ख़ूब जंग होती) जो जो बाते ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) बयान करते हैं उस से ख़ुदा पाक व पाकीज़ा है वह पोशीदा और हाजि़र (सबसे) खु़दा वाकि़फ है ग़रज़ वह उनके शिर्क से (बिल्कुल पाक और) बालातर है (92)
(ऐ रसूल) तुम दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस (अज़ाब) का तूने उनसे वायदा किया है अगर शायद तू मुझे दिखाए (93)
तो परवरदिगार मुझे उन ज़ालिम लोगों के हमराह न करना (94)
और (ऐ रसूल) हम यक़ीनन इस पर क़ादिर हैं कि जिस (अज़ाब) का हम उनसे वायदा करते हैं तुम्हें दिखा दें (95)
और बुरी बात के जवाब में ऐसी बात कहो जो निहायत अच्छी हो जो कुछ ये लोग (तुम्हारी निस्बत) बयान करते हैं उससे हम ख़ूब वाकि़फ हैं (96)
और (ये भी) दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मै शैतान के वसवसों से तेरी पनाह माँगता हूँ (97)
और ऐ मेरे परवरदिगार इससे भी तेरी पनाह माँगता हूँ कि शयातीन मेरे पास आएँ (98)
(और कुफ़्फ़ार तो मानेगें नहीं) यहाँ तक कि जब उनमें से किसी को मौत आयी तो कहने लगे परवरदिगार तू मुझे एक बार उस मुक़ाम (दुनिया) में छोड़ आया हूँ फिर वापस कर दे ताकि मै (अपकी दफ़ा) अच्छे अच्छे काम करूं (99)
(जवाब दिया जाएगा) हरगिज़ नहीं ये एक लग़ो बात है- जिसे वह बक रहा और उनके (मरने के) बाद (आलमे) बरज़ख़ है (100)
(जहाँ) क़ब्रों से उठाए जाएँगें (रहना होगा) फिर जिस वक़्त सूर फूँका जाएगा तो उस दिन न लोगों में क़राबत दारियाँ रहेगी और न एक दूसरे की बात पूछेंगे (101)
फिर जिन (के नेकियों) के पल्लें भारी होगें तो यही लोग कामयाब होंगे (102)
और जिन (के नेकियों) के पल्लें हल्के होंगें तो यही लोग है जिन्होंने अपना नुक़सान किया कि हमेशा जहन्नुम में रहेंगे (103)
और (उनकी ये हालत होगी कि) जहन्नुम की आग उनके मुँह को झुलसा देगी और लोग मुँह बनाए हुए होगें (104)
(उस वक़्त हम पूछेंगें) क्या तुम्हारे सामने मेरी आयतें न पढ़ी गयीं थीं (ज़रुर पढ़ी गयी थीं) तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे (105)
वह जवाब देगें ऐ हमारे परवरदिगार हमको हमारी कम्बख़्ती ने आज़माया और हम गुमराह लोग थे (106)
परवरदिगार हमको (अबकी दफ़ा ) किसी तरह इस जहन्नुम से निकाल दे फिर अगर दोबारा हम ऐसा करें तो अलबत्ता हम कुसूरवार हैं (107)
ख़ुदा फरमाएगा दूर हो इसी में (तुम को रहना होगा) और (बस) मुझ से बात न करो (108)
मेरे बन्दों में से एक गिरोह ऐसा भी था जो (बराबर) ये दुआ करता था कि ऐ हमारे पालने वाले हम इमान लाए तो तू हमको बक्श दे और हम पर रहम कर तू तो तमाम रहम करने वालों से बेहतर है (109)
तो तुम लोगों ने उन्हें मसख़रा बना लिया-यहाँ तक कि (गोया) उन लोगों ने तुम से मेरी याद भुला दी और तुम उन पर (बराबर) हँसते रहे (110)
मैने आज उनको उनके सब्र का अच्छा बदला दिया कि यही लोग अपनी(क़ातिर ख़्वाह) मुराद को पहुँचने वाले हैं (111)
(फिर उनसे) ख़ुदा पूछेगा कि (आखि़र) तुम ज़मीन पर कितने बरस रहे (112)
वह कहेंगें (बरस कैसा) हम तो बस पूरा एक दिन रहे या एक दिन से भी कम (113)
तो तुम शुमार करने वालों से पूछ लो ख़ुदा फरमाएगा बेशक तुम (ज़मीन में) बहुत ही कम ठहरे काश तुम (इतनी बात भी दुनिया में) समझे होते (114)
तो क्या तुम ये ख़्याल करते हो कि हमने तुमको (यूँ ही) बेकार पैदा किया और ये कि तुम हमारे हुज़ूर में लौटा कर न लाए जाओगे (115)
तो ख़ुदा जो सच्चा बादशाह (हर चीज़ से) बरतर व आला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वहीं) अर्शे बुज़ुर्ग का मालिक है (116)
और जो शख़्स ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद की भी परसतिश करेगा उसके पास इस शिर्क की कोई दलील तो है नहीं तो बस उसका हिसाब (किताब) उसके परवरदिगार ही के पास होगा (मगर याद रहे कि कुफ़्फ़ार हरगिज़ फलाह पाने वाले नहीं) (117)
और (ऐ रसूल) तुम कह दो परवरदिगार तू (मेरी उम्मत को) बक्श दे और तरस खा और तू तो सब रहम करने वालों से बेहतर है (118)

सूरए अल मोमिनून ख़त्म